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संस्थापक - स्व. सुरेंद्र कुमार जैन
भावना भगवान को पाषान बना देती है, भावना इन्सान को शैतान बना देती है।
विवेक के स्तर से नीचे उतरने पर, भावना इन्सान को हैवान बना देती है।
जी हाँ, भावना ही तो है जिसका मानव जीवन में अहम स्थान है। भावना से ही मनुष्य पतोन्मुख हो जाता है और मानव शीर्ष स्तर पर पहुंच जाता है। कहा भी गया है ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन वैसी’। मनुष्य की प्रगति के चार सोपान बताये गये हैं उसमें भी प्रथम स्थान भावना का ही है, दूसरा सोपान संकल्प है तो तीसरा सोपान साधना को माना गया है। ये तीन सोपान पार कर लेने पर चैथे सोपान सफलता को चरण चूमना ही पड़ता है।
परिवहन सम्पदा के अतीत में इस भावना का ही प्रमुख स्थान रहा है। याद आता है मुझे 19 सितम्बर, 1980 का वह दिन जब मुझे राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा द्वितीय श्रेणी में उत्तीण होने पर पत्रकारिता में स्नातकोत्तर उपाधि से विभूषित किया गया। यह वह समय था जब पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत कम व्यक्ति डिप्लोमाधारी हुआ करते थे। उस समय मैं श्री महावीर दिगम्बर जैन उच्च माध्यमिक विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकाध्यक्ष पर पदासीन था। तत्कालीन विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री तेजकरण डंडिया द्वारा विद्यालय पत्रिका व दैनिक डायरी तथा विद्यालय के प्रकाशन सम्बन्धी सभी कार्य का उत्तरदायित्व मुझे ही सौंप दिया था। समाचार पत्रों में विद्यालय की गतिविधियों के समाचार बनाना व प्रकाशनार्थ प्रेषित करना भी मेरा ही उत्तरदायित्व था। यही कारण था कि मेरी सोच, कार्य क्षमता व योग्यता का आंकलन करते हुए विद्यालय प्रशासन द्वारा स्वयं के व्यय पर पत्रकारिता में डिप्लोमा का कोर्स करने के लिए मुझे चयन किया गया, लक्ष्य था विद्यालय को दक्षता के साथ सेवाएं देने का लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था, समय ने करवट ली और विद्यालय के प्रशासन मंे बदलाव आया। यही वह समय था जब मन में अपना एक निजी समाचार पत्र प्रकाशित करने का भाव पैदा हुआ। परामर्श किया गया अपने मित्रों से, अपने सम्बन्धियों से। सभी ने जोखिम भरा कदम बताया, लेकिन धुन के धनी ने संकल्प लिया एक ऐसा समाचार पत्र प्रकाशित करने का जो राजनीतिक न हो। तलाश की गई उस क्षेत्र की जिसमें कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हो रहा हो। यह समय था अक्टूबर 1980 का।
नवम्बर 1980 में मेरा सम्पर्क हुआ तत्कालीन दी राजस्थान ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के सचिव श्री हीरालाल जी अग्रवाल से। उस समय ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में हिन्दी में कोई भी समाचार पत्र प्रकाशन नहीं हो रहा था। काफी सोच विचार किया गया, मनन किया गया कि समाचार पत्र में क्या प्रकाशित होगा? प्रकाशन सामग्री के क्या स्त्रोत होंगे? इन सभी बिन्दुओं पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया तथा सफलता के लिये संकल्प के द्वितीय सोपान पर कदम बढ़ा दिये। दृढ़ संकल्प कर लिया गया कि इस सम्पूर्ण व्यवसायिक क्षेत्र (ट्रांसपोर्ट व्यवसाय ऑटोमोबाइल व्यवसाय तथा मैकेनिक) की समस्याओं को उजागर करके कुछ रचनात्मक कार्य किये जावें। संकल्प के साथ सफलता के लिये तीसरा कदम बढ़ाया ‘साधना’ का। संकल्प लिया कि ऐसी कोई भी सामग्री को इस समाचार पत्र मंे कोई भी स्थान नहीं मिलेगा जिसका व्यवसाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। पीत पत्रकारिता (ब्लेक मेलिंग) से बचा जावेगा। इसी सोच ने मुझे आगे बढ़ाया और दिये से दिया जलाते हुए तन मन व धन से जुट गया समाचार पत्र का प्रथम स्थापना अंक प्रकाशित करने के लिये।
शीर्षक रजिस्टर्ड कराने के लिए रजिस्ट्रार को निम्नलिखित तरह शीर्षक प्रस्तावित किये गये-ट्रांसपोर्ट जगत, परिवहन जगत, यातायात जगत, ट्रांसपोर्ट संदेश, परिवहन टाइम्स, यातायात टाइम्स, परिवहन मेल, यातायात मे, परिवहन एक्सप्रेस, यातायात एक्सप्रेस ऑटोमोबाइल संदेश, परिवहन सम्पदा आदि। इनमें से ‘परिवहन सम्पदा’ शीर्षक रजिस्टर्ड किया गया। शीर्षक रजिस्टर्ड होने के पश्चात तैयारी में जुट गये प्रथम अंक के प्रकाशन में।
प्रथम स्थापना अंक में केवल एम आई रोड़, एम.ड़ी रोड़, आगरा रोड़ व चांदी की टकसाल का ही प्रतिनिधित्व रहा। इन सभी कार्यों को पूर्ण करने में में समय लगा चार माह का। लेकिन इस अवधि में प्रत्येक व्यापारी को इतना अभिलाषित कर दिया गया कि उन्हें प्रथम स्थापना अंक की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहने लगी और यह प्रतीक्ष समाप्त हुई ‘अप्रेल 1981’ में जब प्रथम स्थापना अंक मासिक समाचार पत्र साईज 15 ग10 इंच साईज में बाजार के लिये जारी कर दिया गया। होने को इस अंक में कोई विशेष सामग्री नहीं थी लेकिन यह प्रथम स्थापना अंक मेरी सफलता का प्रथम पुष्प था। उस खुशी का शब्दों में वर्णन करना भी कठिन है। खुशी केवल प्रथम अंक के प्रकाशन की ही नहीं थी बल्कि खुशी इस बात की थी कि उसी दिन जैन मोटर कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड, एम. आई. रोड़, के अक्षय जैन ने इस समाचार पत्र का रुपये 51/- में आजीवन सदस्यता ग्रहण करके सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त किया। प्रथम माह में यद्यपि केवल सात सदस्य ही बना पाया लेकिन इस क्षेत्र का भरपूर सहयोग प्राप्त करने में सफ रहा।
कदम आगे बढ़ते गये, पीछे मुड़कर नहीं देख। जुलाई 81 में ट्रांसपोर्ट नगर में प्रवेश लेने के पश्चात समस्त जयपुर क्षेत्र में समाचार पत्र का प्रचार व प्रसार हो गया। अथक परिश्रम से छः माह में ही समाचार पत्र का प्रसार सम्पूर्ण राजस्थान में हो चुका था। राजस्थान से बाहर सर्व प्रथम ग्वालियर का रुख किया गया।
सन 1990 तक परिवहन सम्पदा का प्रसार सम्पूर्ण भारत में हो चुका था। तब से कदम आगे बढ़ते गये। पीछे कभी मुड़कर नहीं देखा।
1994 का वर्ष परिवहन सम्पदा के इतिहास मंे महत्वपूर्ण रहा जब ट्रांसपोर्ट नगर, जयपुर में पत्रिका का कार्यालय खोला गया। यही से शुरू हो गया मेेरे छोटे सुपुत्र अवनीश जैन का योगदान। एक और एक ग्यारह हो गये और पत्रिका ने द्रुतगति से विकास की ओर कदम बढ़ा दिये। सन 2000 में पत्रिका को तत्कालीन नवीनतम टैक्नालोजी कम्प्यूटर व आॅफसेट प्रिन्टिंग से जोड़ दिया गया। आज यह पत्रिता ऑटोमोबाइल क्षेत्र की अग्रणी पत्रिका मानी जाती हैं।
परिवहन सम्पदा के 40 वर्ष विकल्प बनी आवश्यकता
परिवहन सम्पदा अपने 40 वर्षो का सफर पूरा करके 41 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। आॅटोमोबाइल जगत में 40 वर्ष पूर्व परिवहन सम्पदा का प्रकाशन जिस उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया था, उसको हम आज साक्षात साकार होता हुआ देख रहे है। परिवहन सम्पदा को शुरूआती दौर में एक विकल्प के रूप में देखा जाता था जिसका मतलब है कि अन्य समाचार पत्रों की तरह यह भी एक मीडिया है और खबरें पहुंचाने का काम करता है और यह स्थानीय समाचार पत्र ही है लेकिन परिवहन सम्पदा का असल मकसद क्या रहा, यह समय के साथ-साथ सामने आता चला गया। राजनितिक खबरें फिल्मी गपशप, खेल समाचार आदि समाचारों को पहुंचाने का कार्य आज देशभर में सैकड़ो तरह के मीडिया कर रहे हैं पर समाचारों के साथ-साथ व्यवसाय के निर्णयों में सहायक बनना व अपनी भागीदारी से निर्णयों को सही दिशा देने का सौभाग्य कुछ ही पत्रिकाओं को मिल पाया है। आॅटोमोबाइल क्षेत्र में हिन्दी भाषा की परिवहन सम्पदा राष्ट्रीय स्तर में प्रसारित होने वाली पहली पत्रिका है जो कि पाठकों के व्यवसाय/कारोबारी निर्णयों में सहायक है या फिर नई संभावनाओं के दोहन में मददगार साबित हो रही है। आज परिवहन सम्पदा देश के लगभग सभी राज्यों के 70 प्रतिशत से अधिक शहरों व आॅटोमोबाइल व्यवसायियों को नित नई-नई जानकारियां, स्पेयर पाटर््स रेट्स, सूचनाऐं आदि उपलब्ध करा रहा है। निर्माताओं को थोक विक्रेताओं से व थोक विक्रेताओं को खुदरा व्यवसायियों से जोड़ने का कार्य भी कर रहा है। परिवहन सम्पदा का कवरेज आॅटोमोबाइल्स के सभी विषयों पर है जिससे एक कारोबारी उनमें से किसी न किसी से जुड़ा ही रहता है। हाल ही में परिवहन सम्पदा द्वारा किए गए पाठक सर्वे में यह बात साफ है कि यह पत्रिका अब विकल्प नहीं रही वरन् आटोमोबाइल जगत की जरूरत बनकर उभरी है।
आभारी - अवनीश जैन, सम्पादक
हमें इस बात की खुशी है कि परिवहन सम्पदा पत्रिका अपने पाठकों की आशाओं के अनुरूप कार्य प्रदर्शन कर रही है और आने वाले वर्षो में परिवहन सम्पदा लगातार नई-नई सामग्रियां उपलब्ध करवाने की अपनी थीम को मजबूत करने के प्रयास करती रहेगी। इसी के साथ देश के आटोमोबाइल व्यवसाय से जुड़े व्यापारी, निर्माता, ट्रांसपोर्टस् वर्ग में अपनी मजबूत पकड़ को और अधिक विस्तार देने का कार्य भी निरंतर चलता रहेगा। इन्हीं प्रयासों को अगर आपका सहयोग अब तक के अनुरूप मिलता रहेगा तो हम विश्वास दिलाते है कि आटोमोबाइल जगत के भविष्य की संभावित तस्वीर दिखाने व कारोबारों को आॅटोमोबाइल सम्बन्धी जानकारियां उपलब्ध कराने में कोई कमी नहीं छोड़ी जाएगी। इसी श्रृखंला को आगे बढ़ाते हुए आज के इस तेज युग में हमने परिवहन संपदा से सभी पाठकों के लिये अब इन्टरनैट के माध्यम से इस व्यवसाय से जुड़ी विस्तृत जानकारियां उपलब्ध करवाने हेतु का निर्णय लिया है और अल्प समय में ही हम अपनी वैबसाइड के द्वारा अपने सभी पाठकों से सीधे जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त कर सकेंगें। स्मरण रहे कि मुद्रित प्रत्रिका में एक सीमा तक ही हम जानकारियां या आॅटोमोबाइल व्यवसाय से जुड़ी खबरों का प्रकाशन कर पाते हैं लेकिन इस तेजी के युग में यह सूचनायें व समाचार तुरन्त व अधिक से अधिक केवल इन्टरनैट के माध्यम से ही दी जा सकती है तथा किसी भी समय पर और कहीं भी दी जा सकती है क्योंकि यह सभी सूचनायें वैवसाइड द्वारा पाठक अपने स्मार्टफोन से भी प्राप्त कर सकते है।
पाठकों व विज्ञापनदाताओं द्वारा परिवहन सम्पदा को मिले निरंतर सहयोग के लिए हृदय से आभार.......