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Agency | Sep 04, 2025 | Company Update
भारत के लिए जोखिम के साथ अवसर भीर : छोटे सप्लायर अधिक दबाव में
ट्रंप टैरिफ ने वैश्विक ऑटो उघोग में भूचाल ला दिया है। अमरीका में जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे देशों से आने वाले ऑटो पार्ट्स महंगे हो गए हैं, जिससे सप्लाई चेन गंभीर संकट में फसती जा रही है। चूंकि अमरीका सबसे बड़ा खरीदार है, ऐसे में टैरिफ की वजह से छोटे और मध्यम सप्लायर कम्पनिया, जो इस उघोग की बैकबोन हैं, सबसे अधिक दबाव में हैं।
जापान के हेकिनन जैसे छोटे कस्बों में ऑटो पार्ट फैक्ट्रियां दशकों से काम कर रही हैं और टोयोटा जैसी बड़ी कंपनियों को सप्लाई करती हैं। अब वहां के छोटे निर्माता असमंजस में हैं-क्या अमरीकी बाजार में उनकी मांग बनी रहेगी? जर्मनी और दक्षिण कोरिया के सप्लायर्स भी यही संकट झेल रहे हैं। यह लाखों नौकरियों और वैश्विक ऑटो उघोग के भविष्य को प्रभावित कर रहा है। दक्षिण कोरिया ने 31 अरब डाॅलर का पैैकेज घोषित किया है, ताकि प्रभावित कंपनियों को सहारा मिल सके। जापान ने राष्ट्रीय आपदा करार देते हुए 6.3 अरब डाॅलर की सहायता योजना शुरू की है।
कंपनियां परेशान
जर्मनी के ऑटो पार्ट्स उघोग में 7 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। साउथ कोरिया का ऑटो सेक्टर 3.3 लाख नौकरियां देता है। टैरिफ से इनके उत्पादन और निर्यात पर गहरी चोट पड़ी है। ईयू की रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीकी टैरिफ से जर्मन कंपनियों की आय में 81ः तक गिरावट आ सकती है। जापान से अमरीका को होने वाले ऑटो पार्ट्स का निर्यात जुलाई महीने में 17.4% घट गया। अमरीकी कंपनियों की चिंता बढ़ गई है। जनरल मोटर्स और फोर्ड जैसी अमरीकी कंपनियां मेक्सिको और दक्षिण कोरिया से पार्ट्स खरीदती हैं, जिससे उनके उत्पादन खर्च में भारी बढ़ोतरी हुई है। कई कंपनियों ने कहा है कि वे अमरीका में कार असेंबलिंग कम करके पुर्जे दूसरे बाजारों से लाना अधिक फायदेमंद समझेंगी। इससे अमरीकी नौकरियों पर भी असर पड़ सकता है।
भारत पर असर: दोधारी तलवार
भारत पर ट्रम्प ने सबसे अधिक टैरिफ लगाया है। भारत हर साल लगभग 7 अरब डाॅलर ( 61,000 करोड़ ) के ऑटो पार्ट्स निर्यात करता है और इनमे से करीब एक-तिहाई अमरीका को जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रंप टैरिफ से भारत के निर्यात में 15-20% तक गिरावट, उत्पादन में लगभग 8% की कमी और कंपनियों के मुनाफे में 1.25-1.5% तक गिरावट आ सकती है। लेकिन यह स्थिति भारत के लिए अवसर भी खोलती है। जापान, जर्मनी और कोरिया जैसे देशों पर जब लागत का दबाव बढे़गा, तब अमरीकी कंपनियां कम लागत और भरोसेमंद सप्लायर की तलाश करेंगी। ऐसे में भारत अपनी सस्ती लेबर काॅस्ट, सुध्रती गुणवत्ता और इलेक्ट्रिक वाहन पार्ट्स में बढ़ते निवेश के दम पर वैश्विक सप्लाई चेन में और बड़ी भूमिका निभा सकता है।